इंदौर, १४/१/१० (मुकेश ठाकुर) । पत्रकारिता की आत्मा के बिना महल भी किस काम के...मीठा पेड़ लगाया था, फल आए हैं कड़वे क्यूं..? रोटी जल जाए उससे पहले पलट दीजिए...यह किसी सलीम जावेद द्वारा लिखी हिन्दी फिल्म के डॉयलाग नहीं है, यह उन सच्चाई के सिध्दांतों पर चलकर दबंगता और ईमानदारी से कलम चलाने वाले उन पत्रकारों की आवाज है, जिन्होंने अप्रैल माह में हुए इन्दौर प्रेस क्लब के त्रि-वार्षिक में उठाई थी...मगर राजनीति की तरह प्रेस क्लब के चुनावों में भी राजनीति घुस गई... सभी तरह के हथकंडे अपनाकर वास्तविक पत्रकारों को भी भ्रमित कर फिर वही चंडाल चौकड़ी ने प्रेस क्लब की सत्ता हथिया ली...
प्रेस क्लब यानी पत्रकारों के मेल-जोल, उनके एकेडमिक उत्थान और स्वस्थ मनोरंजन का स्थान, जहां जाकर पत्रकार कुछ ऐसा सीख सकें, जो उनके कैरियर को आगे बढ़ाने में मददगार हो, जहां सुकूनभरे माहौल में पत्रकार अपने सुख-दु:ख बांट सकें और पा सकें अपनी समस्याओं का समाधान... इन्दौर प्रेस क्लब के वर्तमान संचालनकर्ताओं ने भवन बनाने, वरिष्ठों का सम्मान देने और गतिविधियां चलाने के नाम पर चंदे-धंधे का काम शुरू कर दिया है...
व्यावसायिकता और पैसे का प्रवाह इस कदर बढ़ गया कि वास्तविक पत्रकार अपने आप को उपेक्षित और कौने में खड़ा पाने लगा... उनकी जगह वे लोग मुख्य भूमिका में दिखने लगे जो जमीन, शराब, सट्टा और अन्य अवैध गतिविधियों के कारोबार में लिप्त हैं... चंदाखोरी की प्रवृत्ति इस कदर बढ़ गई कि पैसा लाकर देने वाले ही सब कुछ हो गए... प्रेस क्लब में चल रही गतिविधियों और कुछ पदाधिकारियों के यिाकलापों को लेकर पत्रकार जगत ही नहीं, समाज के दूसरे तबकों में भी खुसर-पुसर शुरू हो गई कुछ लोगों ने प्रेस क्लब के नाम पर दुरुपयोग भी किया है... हमें विकास चाहिए, पर पत्रकारिता की आत्मा को उसकी नींव में दफन नहीं होने दिया जा सकता... प्रेस क्लब में कायदे से रिपोर्टिंग, एडिटिंग, फोटोग्राफी, इलेक्ट्रानिक व रियल (इंटरनेट), मीडिया क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों के साथ संवाद स्थापित किया जाना चाहिए... नियमित पत्रकारवार्ताओं के अलावा विशिष्ट हस्तियों के प्रेस से मिलिए कार्यम आयोजित किए जाना चाहिए लेकिन यहां पर पत्रकारवार्ताएं रोजाना होती है... पत्रकारवार्ताओं में यादातर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, इलेक्ट्रानिक मीडिया के रिपोर्टरों के बजाए फोकटियों की फौज घुस जाती है...
जो कि चाय-नाश्ते और गिफ्ट लेकर गायब हो जाती है... पत्रकारवार्ता के जरिए अपनी बात कहने वालों को पत्र के माध्यम से जगह नहीं मिल पाती... सैकड़ों पत्रकारवार्ता करने वाले आयोजकों का कहना है कि प्रेस क्लब में पत्रकारवार्ता बुलाओ तो अच्छा रिस्पांस नहीं मिलता... पैसा खर्च करो और लिफाफे देने के बावजूद खबरें नहीं छपती... हमें सीधे प्रेस जाकर ही सम्पर्क करना पड़ता है... अपनी बात कहनी पड़ती है... तो फिर प्रेस क्लब और यहां होने वाली पत्रकारवार्ताओं का क्या मतलब..? प्रेस क्लब में हरदम पत्रकार कम और गैर पत्रकार यादा बैठे रहते हैं... इनमें नेताओं के पट्ठे, शराब ठेकेदारों के लोग, जमीन माफियाओं के आदमी से लेकर हर किस्म के लोग आते-जाते रहते हैं...पदाधिकारियों से गुफ्तगू करते हैं... किसी को निपटाने की योजनाएं बनाते हैं और चले जाते हैं... प्रेस क्लब में आए दिन मुशायरे, गीत-संगीत निशा, भजन संध्या और दाल-बाफले की पार्टियों जैसे आयोजन चलते हैं... जिससे पत्रकारिता का दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं रहता... ऐसे प्रेस क्लब को ऐश क्लब ही कहा जाएगा...
प्रेस को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहें या कि समाज का आईना, जो कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायी शक्ति को उसका सही चेहरा दिखाता है... ताकि इन तीनों शक्तियों की सूरत-सीरत और पवित्रता बरकरार रहे... माना पिछले कुछ वर्षों में तीनों स्तंभों के साथ चतुर्थ स्तंभ भी अपनेर् कत्तव्यों से कुछ पदच्युत, जिसके कारण कलम में उतना पैनापन नहीं रहा, जितना होना चाहिए या कहें कि आईना इतना साफ नहीं रहा कि छवि को पूरे पैनेपन से दिखा सके... फिर भी इन्दौर का राष्ट्रीय पत्रकारजगत के पटल पर हमेशा ही शिखर पर स्थान रहा है... इन्दौर प्रेस क्लब ने स्व. राहुल बारपूते, स्व. राजेन्द्र माथुर, स्व. माणकचन्द वाजपेयी, स्व. प्रभात जोशी जैसी विभूतियां दी हैं... एक जमाने में इन्दौर प्रेस क्लब की चर्चा पूरे देश में हुआ करती थी...
क्योंकि उस जमाने में पत्रकार और क्लब के पदाधिकारी गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी के पदचिन्हों पर चलने का साहस रखते थे...पूर्व में भले ही इन्दौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष महेश जोशी, माणकलाल वाजपेयी, कृष्णकुमार अष्ठाना, विद्याधर शुक्ला, जयकृष्ण गौड़, शशिन्द्र जलधारी, ओमी खण्डेलवाल, सतीश जोशी हो या कार्यकारी अध्यक्ष जीवन साहू सभी ने प्रेस क्लब की साख को बनाए रखा, श्रेष्ठा से काम किया... चंदे-धंधे की गूंज नहीं सुनाई दी... सदस्यता के नाम पर फोकटियों की भर्ती नहीं की गई... इससे यादा शर्मनाक क्या होगा कि इन्दौर प्रेस क्लब के सदस्यों में वे लोग भी शामिल हैं जो कि नगर निगम के नियमित और मस्टरकर्मी है... शराब के ठेकेदार हैं... कपड़े और अन्य दुकान चलाने वाले हैं...
निगम कर्मचारी नेताओं के बिगड़ैल शहजादे हैं... जिन्हें पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं आती वे प्रेस क्लब की सदस्यता का कार्ड लिए शहर की छाती पर मूंग दल रहे हैं... एक कार्यकारिणी की बैठक में वरिष्ठ पत्रकार शशिन्द्र जलधारी ने यह मुद्दा दबंगता से उठाया था कि मुझे शर्म आती है कि प्रेस क्लब में कैसे-कैसे लोगों को सदस्यता दे दी गई है... इस पर प्रेस क्लब का कप्तान और उनकी चंडाल चौकड़ी में सांप सूंघ गया और जांच होगी कि बात कहकर इस बात को ठंडा कर दिया... नम्बर वन सांध्य दैनिक के एक तेज तर्रार रिपोर्टर की पीड़ा देखिए कि जिस कप्तान को उन्होंने पत्रकारिता पर चलना सिखलाया... श्रमजीवी पत्रकार संघ का पदाधिकारी बनवाया... फिर प्रेस क्लब की सीढ़ियां दिखलाई... उन्हीं के अरमानों को कुचल दिया गया... प्रेस क्लब में अगर कोई अच्छी चीज नजर आती है तो वह है वहां पर मां सरस्वती का मंदिर... पदाधिकारी पहले यहां पर बार खोलने का अरमान लिए घूम रहे थे जैसे ही तेज तर्रार रिपोर्टर को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कलम की देवी का मंदिर यहां पर बनवाकर बार पर विराम लगवा दिया... इसके बाद पत्रकार महोदय ने प्रेस क्लब से ही तौबा कर ली और अब वे इधर पैर रखकर भी नहीं सोते हैं... पदाधिकारियों के ऐश की मंशा पूरी न हो सकी, बाद में क्लब परिसर में ही जगह घेरकर कभी रेस्टोरेंट तो कभी होटल तो कभी भोजनालय खुलवा दिया, अब तो पान की दुकान तक खुल गई है... (ङ्ढह्म)
रेस्टोरेंट की कमान क्लब के कप्तान के हाथों में है और यहां पर अब घर से छुपकर आए लड़के-लड़कियां भी पर्दे की आड़ में प्यार की पींगे बढ़ाते हुए देखे जा सकते हैं... चुनावों में जय हो का नारा देकर 15 दिनों तक फोकटिए पत्रकारों को ऐश करवाकर चुनाव जीत गए... और फिर कप्तान और चुनिंदा पदाधिकारियों ने क्लब के नाम पर शहर में दबदबा बनाकर वसूली करना शुरू कर दिया है... इनका टारगेट अब बड़े-बड़े घपले-घोटालेबाज से लेकर अधिकारी और राजनेता भी बन रहे हैं... आज प्रेस क्लब भ्रष्टाचार के अड्डे में तब्दील हो चुका है... इन्दौर के प्रेस जगत पर दलालों का कब्जा है... पत्रकारिता की आड़ में शहर में भड़वागिरी, दलाली की जा रही है... आर्केस्ट्रा वाले, जुआरी, सटोरियों को प्रेस क्लब में सदस्यता दे दी गई है... इन्दौर प्रेस क्लब की नई इमारत पूरी तरह से अवैध है... महाआश्चर्य का विषय यह है कि अवैध इमारत को केन्द्रीय, प्रदेश के मंत्रियों के अलावा सांसदों, महापौर, विधायकों, विकास प्राधिकरण, नगर निगम ने भी अपनी मद से भारी-भरकम राशि निर्माण कार्य के लिए दी है... सरकार के लगभग डेढ़ करोड़ रुपए के आर्थिक घोटाले का जिम्मेदार कौन है..?
यह जांच का विषय है... क्लब के नए भवन की शुरूआत वर्ष 2005 में हुई... प्रेस क्लब के कथित दलालों ने चंदाखोरी के उद्देश्य से विधायकों, सांसदों, महापौर, विकास प्राधिकरण, अध्यक्ष, नगर निगम सहित कई लोगों के आगे हाथ फैलाया और प्रेस क्लब के भवन के निर्माण के लिए सहयोग मांगा... सहयोग मांगते समय प्रेस क्लब के दलालों ने इन्हें भ्रमित किया... यह जानकारी नहीं दी कि जिस भवन के निर्माण के लिए वे सहायता का कटोरा लिए घूम रहे हैं उसकी बुनियाद ही अवैध है... सूत्रों की बातों पर गौर करें तो डेढ़ करोड़ से भी अधिक की राशि नए भवन बनाने के नाम पर जुटाई गई है... इन्दौर नगर निगम के दिनांक 2.11.2009 के पत्र मांक 21231बी012 के अनुसार आवेदक इन्दौर प्रेस क्लब के आवेदन मांक 12920 दिनांक 2.09.05 को प्रस्तुत कर इन्दौर प्रेस क्लब, एमजी रोड इन्दौर के नक्शे स्वीकृति देतु प्रस्तावित किए गए थे... जिसे मेमो मांक 6410 दिनांक 15.9.05 को नक्शे अस्वीकृत किए गए... उसके पश्चात आवेदक द्वारा जवाब प्रस्तुत नहीं किया..
सवाल यह उठता है कि बात-बात पर छोटे-छोटे अतिमण तोड़ने वाले नगर निगम के अधिकारियों ने इस भवन को तोड़ने या नियमों के विपरीत निर्माण के संबंध में कोई नोटिस क्यों नहीं दिया गया... दूसरा सवालिया निशान यह खड़ा होता है कि जब बिल्डिंग का नक्शा ही पास नहीं हुआ तो सरकारी अनुदान, विधायकों, सांसदों, जनप्रतिनिधियों ने अपनी राशि का दुरुपयोग क्यों होने दिया गया...दिनांक 18.11.09 को नजूल अधिकारी इन्दौर द्वारा सूचना के अधिकार के संबंध में जानकारी दी गई कि इन्दौर प्रेस क्लब को 1968 में पुराने महाराजा तुकोजीराव अस्पताल का आउटडोर रोगी चिकित्सा भवन स्थायी उपयोग हेतु आवंटित किया था, प्रेस क्लब को अन्य कोई भूमि आवंटित नहीं की गई है... सूत्रों के अनुसार नजूल की भूमि पर निर्मित इस अवैध भवन में कई अधिकारी जिम्मेदार हैं... जिसमें नगर निगम के भ्रष्ट कमिश्नर विनोद शर्मा के कार्यकाल में उक्त भवन का निर्माण आरंभ हुआ... विनोद शर्मा 16.2.06 से 18.7.7 तक नगर निगम के कमिश्नर रहे... 2005 से 2009 तक नगर निगम के अधिकारी आंख मींचकर सोते रहे सिटी इंजीनियर, भवन अधिकारी के साथ-साथ निगम के इन तात्कालीन कमिश्नर इस अवैध निर्माण के जिम्मेदार हैं... जिन्होंने सरकार के पैसों का दुरुपयोग यह सोचकर किया कि प्रेस पर हाथ डालने का साहस कैसे करें..?
जाहिर है इन भ्रष्ट अधिकारियों के काले कारनामे होंगे जो प्रेस से भयभीत रहे... पूर्व निगम आयुक्त भ्रष्ट विनोद शर्मा, नीरज मंडलोई, सिटी इंजीनियर हरभजनसिंह, भवन अधिकारी अवधेश जैन के साथ-साथ इन्दौर के तत्कालीन कलेक्टर मो. सुलेमान, विवेक अग्रवाल, विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रमोद गुप्ता भी जिम्मेदार है... विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष मधु वर्मा, महापौर उमाशशि शर्मा, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, रायसभा सांसद अब्दुल्ला आजमी, नारायण केसरी, सांसद सुमित्रा महाजन, पूर्व विधायक मनोज पटेल सहित कई विधायकों ने अपनी निधि से इस निर्माण में पैसा जारी किया था... हाल ही के दिनों में सांसद सुषमा स्वराज ने भी इन्दौर प्रेस क्लब परिसर में सार्वजनिक वाचनालय के निर्माण हेतु 10.17 लाख रुपए प्रदाय किए हैं... जिसकी निर्माण एजेंसी इन्दौर विकास प्राधिकरण, महापौर ने कई अन्य मदों से भी पैसा जारी किया है... बहरहाल प्रेस क्लब के हुए इस अवैध भवन के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार घपले में प्रेस क्लब की पूर्व कार्यकारिणी सहित प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल भी जिम्मेदार हैं...
प्रेस क्लब के चुनाव विधानसभा चुनाव से कम नहीं कितनी अफसोसप्रद बात है कि बुध्दिजीवियों की जिस संस्था के चुनाव आम सहमति से एक बैठक में हो जाना चाहिए वह चुनाव विधानसभा या लोकसभा चुनाव से कम जोड़-तोड़ भरे नहीं होते... पहले हर दो साल में प्रेस क्लब के चुनाव होते थे... तिकड़मी खोपड़ियों ने संविधान को तोड़-मरोड़कर तीन साल का प्रस्ताव पारित करवा लिया... जिस तरह नगर निगम में पार्षद स्तर का एल्डरमेन मनोनीत किया जाता है उसी तरह से चुनकर आने वाले सदस्यों के अलावा मनोनीत सदस्यों की जुगाड़ कर ली... कुल मिलाकर पत्रकारों की संस्था में राजनीति घुस गई... चुनाव अभियान के दौरान भारी जोड़-तोड़, धन,बाहुबल का खुलकर प्रयोग होना शुरू हो गया... फोकटिए सदस्यों को शराब और अन्य प्रकार की पार्टियां दी गई...
सारे शहर से चंदा बंटोरा गया... समर्थन में मतदान करने के लिए नेताओं तक से फोन लगवाए गए... यानी हर तरह के हथकंडे अपनाए गए जो कि चुनावों के दौरान नेता अपनाते हैं... मर्यादित चुनावों में मतदान गुप्त रखा जाना चाहिए लेकिन वर्तमान कर्ताधर्ता गुप्त न रखकर चुनाव जीतने के बाद मत पत्र खोलकर देखते हैं कि किसने किसे वोट दिया... बाद में जो सदस्य वोट नहीं देता उससे अछूता व्यवहार किया जाता है... सदस्यता समाप्त तक करने की धौंस दी जाती है... इन्हीं हरकतों के चलते प्रेस क्लब के स्वाभिमानी और स्वच्छ पत्रकारों ने प्रेस क्लब में आना-जाना कम कर दिया या फिर बंद सा कर दिया है... पद्मश्री अभय छजलानी हों या सुरेश सेठ, रमेशचन्द्र अग्रवाल, सुरेन्द्र संघवी, राजेश चेलावत, प्रकाश हिन्दुस्तानी जैसे दिग्गज या फिर कई अन्य जो कि साल में एकाध बार किसी विशेष अवसर पर ही प्रेस क्लब जाते हैं... संबंधित अवसर के बाद वे इधर झांककर भी नहीं देखते... क्या कारण है कि जिस प्रेस क्लब की हर एक गतिविधियां इन दिग्गजों की निगाह में रहती थी, आज वे इस ओर देखते भी नहीं क्योंकि उन्हें मलाल होता है कि आज यह क्लब पत्रकारिता के सिध्दांतों पर न चलकर दलालों के इशारों पर चल रहा है...
इन्दौर प्रेस क्लब से जुड़े कुछ मुद्दे
40 प्रतिशत प्रेस क्लब के सदस्य फर्जी उद्योगपति, व्यवसायी शराब के धंधेवाले ।
फर्जी सदस्यों के खिलाफ न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, जिस पर न्यायालय ने पंजीयन सह. संस्था को मामला बताकर पंजीयक के पाले में गेंद डाली।
जिसमें प्रेस क्लब के दुरुपयोग व अन्य मामले को लेकर प्रेस क्लब पर रिसीवर नियुक्त करने को कहा गया था। चूंकि सरकार में बैठे राजनेताओं के काले धंधे होने के कारण प्रेस पर हाथ डालने से बचते रहे।
प्रेस क्लब के कर्ताधर्ता प्रमुख किसी अखबार से नहीं जुड़े हैं। ऐसे में उनका खर्च कैसे निकलता है। जाहिर है अवैध वसूली होती है।
प्रेस क्लब के चुनाव में धन और बाहुबल का प्रयोग, सदस्यों को जातिगत आधार पर बांटकर पार्टियां देने के हथकंडे शुरू।
ये थे अवैध निर्माण के जिम्मेदारविनोद शर्मा भ्रष्ट निगमायुक्त, प्रमुख गुप्ता मुख्य कार्यपालन अधिकारी, हरभजनसिंह सिटी इंजीनियर, भवन अधिकारी अवधेश जैन। कलेक्टर मो. सुलेमान, विवेक अग्रवाल जिनके कार्यकाल में योजना आयोग के माध्यम से शासकीय रकम का दुरुपयोग किया गया। बिना नक्शे की इमारत खड़ी कर दी गई।
प्रेस क्लब यानी पत्रकारों के मेल-जोल, उनके एकेडमिक उत्थान और स्वस्थ मनोरंजन का स्थान, जहां जाकर पत्रकार कुछ ऐसा सीख सकें, जो उनके कैरियर को आगे बढ़ाने में मददगार हो, जहां सुकूनभरे माहौल में पत्रकार अपने सुख-दु:ख बांट सकें और पा सकें अपनी समस्याओं का समाधान... इन्दौर प्रेस क्लब के वर्तमान संचालनकर्ताओं ने भवन बनाने, वरिष्ठों का सम्मान देने और गतिविधियां चलाने के नाम पर चंदे-धंधे का काम शुरू कर दिया है...
व्यावसायिकता और पैसे का प्रवाह इस कदर बढ़ गया कि वास्तविक पत्रकार अपने आप को उपेक्षित और कौने में खड़ा पाने लगा... उनकी जगह वे लोग मुख्य भूमिका में दिखने लगे जो जमीन, शराब, सट्टा और अन्य अवैध गतिविधियों के कारोबार में लिप्त हैं... चंदाखोरी की प्रवृत्ति इस कदर बढ़ गई कि पैसा लाकर देने वाले ही सब कुछ हो गए... प्रेस क्लब में चल रही गतिविधियों और कुछ पदाधिकारियों के यिाकलापों को लेकर पत्रकार जगत ही नहीं, समाज के दूसरे तबकों में भी खुसर-पुसर शुरू हो गई कुछ लोगों ने प्रेस क्लब के नाम पर दुरुपयोग भी किया है... हमें विकास चाहिए, पर पत्रकारिता की आत्मा को उसकी नींव में दफन नहीं होने दिया जा सकता... प्रेस क्लब में कायदे से रिपोर्टिंग, एडिटिंग, फोटोग्राफी, इलेक्ट्रानिक व रियल (इंटरनेट), मीडिया क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों के साथ संवाद स्थापित किया जाना चाहिए... नियमित पत्रकारवार्ताओं के अलावा विशिष्ट हस्तियों के प्रेस से मिलिए कार्यम आयोजित किए जाना चाहिए लेकिन यहां पर पत्रकारवार्ताएं रोजाना होती है... पत्रकारवार्ताओं में यादातर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, इलेक्ट्रानिक मीडिया के रिपोर्टरों के बजाए फोकटियों की फौज घुस जाती है...
जो कि चाय-नाश्ते और गिफ्ट लेकर गायब हो जाती है... पत्रकारवार्ता के जरिए अपनी बात कहने वालों को पत्र के माध्यम से जगह नहीं मिल पाती... सैकड़ों पत्रकारवार्ता करने वाले आयोजकों का कहना है कि प्रेस क्लब में पत्रकारवार्ता बुलाओ तो अच्छा रिस्पांस नहीं मिलता... पैसा खर्च करो और लिफाफे देने के बावजूद खबरें नहीं छपती... हमें सीधे प्रेस जाकर ही सम्पर्क करना पड़ता है... अपनी बात कहनी पड़ती है... तो फिर प्रेस क्लब और यहां होने वाली पत्रकारवार्ताओं का क्या मतलब..? प्रेस क्लब में हरदम पत्रकार कम और गैर पत्रकार यादा बैठे रहते हैं... इनमें नेताओं के पट्ठे, शराब ठेकेदारों के लोग, जमीन माफियाओं के आदमी से लेकर हर किस्म के लोग आते-जाते रहते हैं...पदाधिकारियों से गुफ्तगू करते हैं... किसी को निपटाने की योजनाएं बनाते हैं और चले जाते हैं... प्रेस क्लब में आए दिन मुशायरे, गीत-संगीत निशा, भजन संध्या और दाल-बाफले की पार्टियों जैसे आयोजन चलते हैं... जिससे पत्रकारिता का दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं रहता... ऐसे प्रेस क्लब को ऐश क्लब ही कहा जाएगा...
प्रेस को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहें या कि समाज का आईना, जो कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायी शक्ति को उसका सही चेहरा दिखाता है... ताकि इन तीनों शक्तियों की सूरत-सीरत और पवित्रता बरकरार रहे... माना पिछले कुछ वर्षों में तीनों स्तंभों के साथ चतुर्थ स्तंभ भी अपनेर् कत्तव्यों से कुछ पदच्युत, जिसके कारण कलम में उतना पैनापन नहीं रहा, जितना होना चाहिए या कहें कि आईना इतना साफ नहीं रहा कि छवि को पूरे पैनेपन से दिखा सके... फिर भी इन्दौर का राष्ट्रीय पत्रकारजगत के पटल पर हमेशा ही शिखर पर स्थान रहा है... इन्दौर प्रेस क्लब ने स्व. राहुल बारपूते, स्व. राजेन्द्र माथुर, स्व. माणकचन्द वाजपेयी, स्व. प्रभात जोशी जैसी विभूतियां दी हैं... एक जमाने में इन्दौर प्रेस क्लब की चर्चा पूरे देश में हुआ करती थी...
क्योंकि उस जमाने में पत्रकार और क्लब के पदाधिकारी गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी के पदचिन्हों पर चलने का साहस रखते थे...पूर्व में भले ही इन्दौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष महेश जोशी, माणकलाल वाजपेयी, कृष्णकुमार अष्ठाना, विद्याधर शुक्ला, जयकृष्ण गौड़, शशिन्द्र जलधारी, ओमी खण्डेलवाल, सतीश जोशी हो या कार्यकारी अध्यक्ष जीवन साहू सभी ने प्रेस क्लब की साख को बनाए रखा, श्रेष्ठा से काम किया... चंदे-धंधे की गूंज नहीं सुनाई दी... सदस्यता के नाम पर फोकटियों की भर्ती नहीं की गई... इससे यादा शर्मनाक क्या होगा कि इन्दौर प्रेस क्लब के सदस्यों में वे लोग भी शामिल हैं जो कि नगर निगम के नियमित और मस्टरकर्मी है... शराब के ठेकेदार हैं... कपड़े और अन्य दुकान चलाने वाले हैं...
निगम कर्मचारी नेताओं के बिगड़ैल शहजादे हैं... जिन्हें पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं आती वे प्रेस क्लब की सदस्यता का कार्ड लिए शहर की छाती पर मूंग दल रहे हैं... एक कार्यकारिणी की बैठक में वरिष्ठ पत्रकार शशिन्द्र जलधारी ने यह मुद्दा दबंगता से उठाया था कि मुझे शर्म आती है कि प्रेस क्लब में कैसे-कैसे लोगों को सदस्यता दे दी गई है... इस पर प्रेस क्लब का कप्तान और उनकी चंडाल चौकड़ी में सांप सूंघ गया और जांच होगी कि बात कहकर इस बात को ठंडा कर दिया... नम्बर वन सांध्य दैनिक के एक तेज तर्रार रिपोर्टर की पीड़ा देखिए कि जिस कप्तान को उन्होंने पत्रकारिता पर चलना सिखलाया... श्रमजीवी पत्रकार संघ का पदाधिकारी बनवाया... फिर प्रेस क्लब की सीढ़ियां दिखलाई... उन्हीं के अरमानों को कुचल दिया गया... प्रेस क्लब में अगर कोई अच्छी चीज नजर आती है तो वह है वहां पर मां सरस्वती का मंदिर... पदाधिकारी पहले यहां पर बार खोलने का अरमान लिए घूम रहे थे जैसे ही तेज तर्रार रिपोर्टर को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कलम की देवी का मंदिर यहां पर बनवाकर बार पर विराम लगवा दिया... इसके बाद पत्रकार महोदय ने प्रेस क्लब से ही तौबा कर ली और अब वे इधर पैर रखकर भी नहीं सोते हैं... पदाधिकारियों के ऐश की मंशा पूरी न हो सकी, बाद में क्लब परिसर में ही जगह घेरकर कभी रेस्टोरेंट तो कभी होटल तो कभी भोजनालय खुलवा दिया, अब तो पान की दुकान तक खुल गई है... (ङ्ढह्म)
रेस्टोरेंट की कमान क्लब के कप्तान के हाथों में है और यहां पर अब घर से छुपकर आए लड़के-लड़कियां भी पर्दे की आड़ में प्यार की पींगे बढ़ाते हुए देखे जा सकते हैं... चुनावों में जय हो का नारा देकर 15 दिनों तक फोकटिए पत्रकारों को ऐश करवाकर चुनाव जीत गए... और फिर कप्तान और चुनिंदा पदाधिकारियों ने क्लब के नाम पर शहर में दबदबा बनाकर वसूली करना शुरू कर दिया है... इनका टारगेट अब बड़े-बड़े घपले-घोटालेबाज से लेकर अधिकारी और राजनेता भी बन रहे हैं... आज प्रेस क्लब भ्रष्टाचार के अड्डे में तब्दील हो चुका है... इन्दौर के प्रेस जगत पर दलालों का कब्जा है... पत्रकारिता की आड़ में शहर में भड़वागिरी, दलाली की जा रही है... आर्केस्ट्रा वाले, जुआरी, सटोरियों को प्रेस क्लब में सदस्यता दे दी गई है... इन्दौर प्रेस क्लब की नई इमारत पूरी तरह से अवैध है... महाआश्चर्य का विषय यह है कि अवैध इमारत को केन्द्रीय, प्रदेश के मंत्रियों के अलावा सांसदों, महापौर, विधायकों, विकास प्राधिकरण, नगर निगम ने भी अपनी मद से भारी-भरकम राशि निर्माण कार्य के लिए दी है... सरकार के लगभग डेढ़ करोड़ रुपए के आर्थिक घोटाले का जिम्मेदार कौन है..?
यह जांच का विषय है... क्लब के नए भवन की शुरूआत वर्ष 2005 में हुई... प्रेस क्लब के कथित दलालों ने चंदाखोरी के उद्देश्य से विधायकों, सांसदों, महापौर, विकास प्राधिकरण, अध्यक्ष, नगर निगम सहित कई लोगों के आगे हाथ फैलाया और प्रेस क्लब के भवन के निर्माण के लिए सहयोग मांगा... सहयोग मांगते समय प्रेस क्लब के दलालों ने इन्हें भ्रमित किया... यह जानकारी नहीं दी कि जिस भवन के निर्माण के लिए वे सहायता का कटोरा लिए घूम रहे हैं उसकी बुनियाद ही अवैध है... सूत्रों की बातों पर गौर करें तो डेढ़ करोड़ से भी अधिक की राशि नए भवन बनाने के नाम पर जुटाई गई है... इन्दौर नगर निगम के दिनांक 2.11.2009 के पत्र मांक 21231बी012 के अनुसार आवेदक इन्दौर प्रेस क्लब के आवेदन मांक 12920 दिनांक 2.09.05 को प्रस्तुत कर इन्दौर प्रेस क्लब, एमजी रोड इन्दौर के नक्शे स्वीकृति देतु प्रस्तावित किए गए थे... जिसे मेमो मांक 6410 दिनांक 15.9.05 को नक्शे अस्वीकृत किए गए... उसके पश्चात आवेदक द्वारा जवाब प्रस्तुत नहीं किया..
सवाल यह उठता है कि बात-बात पर छोटे-छोटे अतिमण तोड़ने वाले नगर निगम के अधिकारियों ने इस भवन को तोड़ने या नियमों के विपरीत निर्माण के संबंध में कोई नोटिस क्यों नहीं दिया गया... दूसरा सवालिया निशान यह खड़ा होता है कि जब बिल्डिंग का नक्शा ही पास नहीं हुआ तो सरकारी अनुदान, विधायकों, सांसदों, जनप्रतिनिधियों ने अपनी राशि का दुरुपयोग क्यों होने दिया गया...दिनांक 18.11.09 को नजूल अधिकारी इन्दौर द्वारा सूचना के अधिकार के संबंध में जानकारी दी गई कि इन्दौर प्रेस क्लब को 1968 में पुराने महाराजा तुकोजीराव अस्पताल का आउटडोर रोगी चिकित्सा भवन स्थायी उपयोग हेतु आवंटित किया था, प्रेस क्लब को अन्य कोई भूमि आवंटित नहीं की गई है... सूत्रों के अनुसार नजूल की भूमि पर निर्मित इस अवैध भवन में कई अधिकारी जिम्मेदार हैं... जिसमें नगर निगम के भ्रष्ट कमिश्नर विनोद शर्मा के कार्यकाल में उक्त भवन का निर्माण आरंभ हुआ... विनोद शर्मा 16.2.06 से 18.7.7 तक नगर निगम के कमिश्नर रहे... 2005 से 2009 तक नगर निगम के अधिकारी आंख मींचकर सोते रहे सिटी इंजीनियर, भवन अधिकारी के साथ-साथ निगम के इन तात्कालीन कमिश्नर इस अवैध निर्माण के जिम्मेदार हैं... जिन्होंने सरकार के पैसों का दुरुपयोग यह सोचकर किया कि प्रेस पर हाथ डालने का साहस कैसे करें..?
जाहिर है इन भ्रष्ट अधिकारियों के काले कारनामे होंगे जो प्रेस से भयभीत रहे... पूर्व निगम आयुक्त भ्रष्ट विनोद शर्मा, नीरज मंडलोई, सिटी इंजीनियर हरभजनसिंह, भवन अधिकारी अवधेश जैन के साथ-साथ इन्दौर के तत्कालीन कलेक्टर मो. सुलेमान, विवेक अग्रवाल, विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रमोद गुप्ता भी जिम्मेदार है... विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष मधु वर्मा, महापौर उमाशशि शर्मा, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, रायसभा सांसद अब्दुल्ला आजमी, नारायण केसरी, सांसद सुमित्रा महाजन, पूर्व विधायक मनोज पटेल सहित कई विधायकों ने अपनी निधि से इस निर्माण में पैसा जारी किया था... हाल ही के दिनों में सांसद सुषमा स्वराज ने भी इन्दौर प्रेस क्लब परिसर में सार्वजनिक वाचनालय के निर्माण हेतु 10.17 लाख रुपए प्रदाय किए हैं... जिसकी निर्माण एजेंसी इन्दौर विकास प्राधिकरण, महापौर ने कई अन्य मदों से भी पैसा जारी किया है... बहरहाल प्रेस क्लब के हुए इस अवैध भवन के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार घपले में प्रेस क्लब की पूर्व कार्यकारिणी सहित प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल भी जिम्मेदार हैं...
प्रेस क्लब के चुनाव विधानसभा चुनाव से कम नहीं कितनी अफसोसप्रद बात है कि बुध्दिजीवियों की जिस संस्था के चुनाव आम सहमति से एक बैठक में हो जाना चाहिए वह चुनाव विधानसभा या लोकसभा चुनाव से कम जोड़-तोड़ भरे नहीं होते... पहले हर दो साल में प्रेस क्लब के चुनाव होते थे... तिकड़मी खोपड़ियों ने संविधान को तोड़-मरोड़कर तीन साल का प्रस्ताव पारित करवा लिया... जिस तरह नगर निगम में पार्षद स्तर का एल्डरमेन मनोनीत किया जाता है उसी तरह से चुनकर आने वाले सदस्यों के अलावा मनोनीत सदस्यों की जुगाड़ कर ली... कुल मिलाकर पत्रकारों की संस्था में राजनीति घुस गई... चुनाव अभियान के दौरान भारी जोड़-तोड़, धन,बाहुबल का खुलकर प्रयोग होना शुरू हो गया... फोकटिए सदस्यों को शराब और अन्य प्रकार की पार्टियां दी गई...
सारे शहर से चंदा बंटोरा गया... समर्थन में मतदान करने के लिए नेताओं तक से फोन लगवाए गए... यानी हर तरह के हथकंडे अपनाए गए जो कि चुनावों के दौरान नेता अपनाते हैं... मर्यादित चुनावों में मतदान गुप्त रखा जाना चाहिए लेकिन वर्तमान कर्ताधर्ता गुप्त न रखकर चुनाव जीतने के बाद मत पत्र खोलकर देखते हैं कि किसने किसे वोट दिया... बाद में जो सदस्य वोट नहीं देता उससे अछूता व्यवहार किया जाता है... सदस्यता समाप्त तक करने की धौंस दी जाती है... इन्हीं हरकतों के चलते प्रेस क्लब के स्वाभिमानी और स्वच्छ पत्रकारों ने प्रेस क्लब में आना-जाना कम कर दिया या फिर बंद सा कर दिया है... पद्मश्री अभय छजलानी हों या सुरेश सेठ, रमेशचन्द्र अग्रवाल, सुरेन्द्र संघवी, राजेश चेलावत, प्रकाश हिन्दुस्तानी जैसे दिग्गज या फिर कई अन्य जो कि साल में एकाध बार किसी विशेष अवसर पर ही प्रेस क्लब जाते हैं... संबंधित अवसर के बाद वे इधर झांककर भी नहीं देखते... क्या कारण है कि जिस प्रेस क्लब की हर एक गतिविधियां इन दिग्गजों की निगाह में रहती थी, आज वे इस ओर देखते भी नहीं क्योंकि उन्हें मलाल होता है कि आज यह क्लब पत्रकारिता के सिध्दांतों पर न चलकर दलालों के इशारों पर चल रहा है...
इन्दौर प्रेस क्लब से जुड़े कुछ मुद्दे
40 प्रतिशत प्रेस क्लब के सदस्य फर्जी उद्योगपति, व्यवसायी शराब के धंधेवाले ।
फर्जी सदस्यों के खिलाफ न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, जिस पर न्यायालय ने पंजीयन सह. संस्था को मामला बताकर पंजीयक के पाले में गेंद डाली।
जिसमें प्रेस क्लब के दुरुपयोग व अन्य मामले को लेकर प्रेस क्लब पर रिसीवर नियुक्त करने को कहा गया था। चूंकि सरकार में बैठे राजनेताओं के काले धंधे होने के कारण प्रेस पर हाथ डालने से बचते रहे।
प्रेस क्लब के कर्ताधर्ता प्रमुख किसी अखबार से नहीं जुड़े हैं। ऐसे में उनका खर्च कैसे निकलता है। जाहिर है अवैध वसूली होती है।
प्रेस क्लब के चुनाव में धन और बाहुबल का प्रयोग, सदस्यों को जातिगत आधार पर बांटकर पार्टियां देने के हथकंडे शुरू।
ये थे अवैध निर्माण के जिम्मेदारविनोद शर्मा भ्रष्ट निगमायुक्त, प्रमुख गुप्ता मुख्य कार्यपालन अधिकारी, हरभजनसिंह सिटी इंजीनियर, भवन अधिकारी अवधेश जैन। कलेक्टर मो. सुलेमान, विवेक अग्रवाल जिनके कार्यकाल में योजना आयोग के माध्यम से शासकीय रकम का दुरुपयोग किया गया। बिना नक्शे की इमारत खड़ी कर दी गई।
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